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पैंसठ साल की आज़ादी

madhav kehta hai
madhav kehta hai
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मैं रोशन करता हूँ हक़-ओ-हुकूक की आग,
बेवजह शोले भड़काना, मेरा काम नहीं,
लूटके वतन को भर रहें हैं गैरों की तिजोरियां,
ये सफ़ेद-पोश यूँ ही मुफ़्त में बदनाम नहीं,
भूख़ तेरी, प्यास तेरी, तू ही समझ,
हुकुमरानों का,अब ये मसला नहीं,काम नहीं,
दीन-ओ-मज़हब के नाम पे इतने हुए कत्ल,
अब तक भी होश में आया क्यूँ ये आवाम नहीं,
तेरी दवा की तासीर से हैरान हैं हम ऐ जम्हूरियत,
इतना महंगा इलाज करवाके चैन नहीं,आराम नहीं.
पैंसठ साल की राह भटकी हुयी आज़ादी,
जहाँ तंगहाली ना हो,कोई शहर -ओ-गाँव नहीं,
कितना उतरो सडकों पर,कितने भी लगाओ नारे,
कान में तेल डालने वालों को सुनता कोई पयाम नहीं.

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