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“तेरी ये हिम्मत,तेरी ये जुर्रत,
तू करे सवाल,और सामने हुकूमत,
बेटा मरने का शौक है तो कुछ और कर,
अबे डर,ज़रा हुकुमरान के जुल्म से डर.”
ये पंक्तियाँ मैंने अंग्रेजों के खिलाफ़ नहीं लिखी हैं,वो बेचारे तो कब के हमारे देश से रुखसत हो चुके हैं,ये अलग बात है क़ि हमारे देश की जनता में आज भी हमारे काले अंग्रेजों ने उन गोरो की तरह खौफ का माहौल कायम रखा है,आज फिर से पढ़ा क़ि पश्चिम बंगाल की नयी हिटलर ममता बेनर्जी ने एक किसान के ये सवाल पूछने पर क़ि उन्होंने किसानों के लिए क्या किया है,तुरंत उसे माओवादी करार देते हुए गिरफ्तार करवा दिया.शाब्बास ममता जी ,आपको तो अपने प्रदेश की मुख्यमंत्री होने की बजाय अपने प्रदेश की गुप्तचर विभाग की मुखिया होना चाहिए,जिन माओवादियों को पकड़ने में हमारे सुरक्षा-बलों के पसीने छूट जाते हैं ,ममता जी ना केवल उन्हें तुरंत पहचान लेती हैं बल्कि गिरफ्तार भी करवा देती हैं, वैसे पहले उत्तर प्रदेश की एक पूर्व मुख्यमंत्री अपने विरोधियों को मनुवादी करार दिया करतीं थीं,पर ममता जी उनसे भी कई कदम आगे जाके अपने से सवाल करने की हिमाकत दिखने वालों को माओवादी करार देकर गिरफ्तार करवाने लगीं हैं,चाहे यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर हों या उसमे पढने वाला छात्र ,अब जो भी ममता जी से सवाल करने की जुर्रत करे उसे दंड तो भोगना ही पड़ेगा.वैसे ममता जी ये भूल गयी क़ि उन्हें ये सत्ता भी,जो उनके अहंकार का पोषण कर रही है ऐसे ही तथाकथित माओवादियों की देन ही है,वरना साम्यवादियों को पश्चिम बंगाल से कोई भी बेदखल नहीं कर पाया था.ये सिर्फ पश्चिम बंगाल ही नहीं बल्कि अब तो लगभग सारे भारत का दुर्भाग्य बन गया है क़ि जो नेता सत्ता में आने से पहले जानता की ड्योढ़ी पर नाक रगड़ते हैं,वोट मांगते हैं,झूठे वादे करते हैं,सत्ता में आते ही खुद को जानता का भगवान् मानने लागतें हैं.फिर क्या मजाल क़ि आम जानता उनसे कोई सवाल कर सके.वैसे मैं माओवादियों का हिमायती नहीं हूँ,पर इतना तो मुझे भी लगता है क़ि माओवादियों के जन्म से लेकर उनके लगातार शक्तिशाली होते जाने के पीछे हमारे नेता ही जिम्मेदार हैं,आज ना जाने क्या बात है क़ि जिस नेता के पास सत्ता में आने से पहले कुछ लाख या करोड़ रुपये होते हैं वो सत्ता में आते ही धनकुबेर बन जाता है.और जानता के खाने का अनाज भी गोदामों में सड़ता रहता है,नेता चाहे जो करें, बेचारी जानता सवाल भी नहीं कर सकती.हमारे देश में लगता है अगर आजादी मिली है तो सिर्फ नेताओं को,कुछ भी कहने की आजादी,कुछ भी करने की आजादी,किसी को भी पकडवाने की आजादी.महंगाई बढाने की आजादी.करहाती जनता का मजाक उड़ाने की आजादी.अगर हमारे देश में न्यायपालिका द्वारा प्रयास नहीं किये जाते तो शायद जनता का लोकतंत्र में से कब का यक़ीन उठ गया होता.ये सिर्फ न्यायपालिका का ही भय है जो हमारे ये नेता कुछ हद तक स्वयं को सीमा में रखते हैं वर्ना सब इनकी लूट और इनके झूठ ने देश क़ि जनता का जीना और भी दुश्कर कर दिया होता.
“और करो जुल्म क़ि अन्दर सुलगी नहीं आग अब तक,
लोकतंत्र में भी नहीं आया जनता का राज अब तक ,
भूख़ कभी तो बनेगी बदलाव की चिंगारी,
खूब हंस लो,तुम उड़ा लो हमारा मजाक तब तक ”
-माधव अवाना
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