madhav kehta hai
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काफ़ी पेचीदे,काफ़ी बड़े,
और भी हैं मसले पड़े,
अर्थव्यवस्था पटरी पर लानी है,
अभी मंहगाई दर भी घटानी है,
किसान तो गरीब है उसकी सोचेंगे बाद में ,
अभी तो साहिब व्यस्त हैं विदेशियों से मुलाक़ात में,
सूखा पड़ जाये तो पड़ जाये,
किसान की खेती उजड़ जाये तो उजड़ जाये,
ज्यादा से ज्यादा किसान क्या करेगा ?
फांसी लगा कर ही तो मरेगा ?
अब उससे मीडिया भी तवज्जो नहीं देती,
सरकार के एजेंडे में नहीं है खेती.
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